जाने किसने छिड़क दिया है तेज़ाब बादलों पर,
कि बूंदों से अब तन को ठंडक नहीं मिलती.
बरसने को तो बरसती है बरसात अब भी यूँही,
पर मिट्टी को अब उससे तरुणाई नहीं मिलती.
खो गई है माहौल से सावन की वो नफासत,
अब सीने में किसी के वो हिलोर नहीं मिलती.
अब न चाँद महकता है, न रात संवरती है,
है कैसी यह सुबह जहाँ रौशनी नहीं मिलती.
आशिक के दिल में भी अब कहाँ जज़्बात बसते हैं,
सनम के आगोश में भी अब राहत नहीं मिलती.
चलने लगी हैं जब से कीबोर्ड पर ये ऊँगलियाँ,
शब्दों में भी अब वो सलाहियत नहीं मिलती.
खो गई है अदब से "शिखा' मोहब्बत इस कदर,
कि कागज़ पर भी अब वो स्याही नहीं मिलती.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
गज़ब जी...उम्दा रचना...
ReplyDeleteअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अन्नत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आप लिखते रहिए ... पाठक सब कुछ खोज लेंगे ...
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteफिर दिल दो #हिन्दी_ब्लॉगिंग को..
ReplyDeleteबहुत ख़ूब .... बेहतरीन पंक्तियाँ रचीं |
ReplyDeleteवाह, बस कीबोर्ड को स्याही नहीं चाहिये #हिन्दी_ब्लॉगिंग
ReplyDeleteसभी का एक ही जवाब है दुसरो से उम्मीदे बहुत ज्यादा है |
ReplyDeleteन जाने कैसा चलन चल रहा है इस ज़िन्दगी में
ReplyDeleteसुकूं की चाहत ही ज़िन्दगी को राहत नहीं देती ...
खूबसूरत ग़ज़ल .
बहुत कुछ पा लिया तो बहुत कुछ खो भी गया हमसे :)
ReplyDeleteवाह....क्या बात है !
ReplyDeleteदाद हाज़िर है !!वैसे खोजो तो ख़ुदा भी मिलता है....ठंडक,हिलोर,रोशनी,स्याही,सलाहियत,राहत क्या चीज़ है !!
~अनुलता~
kyaa baat kyaa baat kyaa baat,
ReplyDeletemere fev mausam kaa geet
जाने किसने छिड़क दिया है तेज़ाब बादलों पर,
ReplyDeleteकि बूंदों से अब तन को ठंडक नहीं मिलती.
कमाल शिखा कमाल
सच है कि बहुत कुछ खो गया है पर चाँद और आशिक सुधरते नहीं या कहूँ बदलते नहीं ....
ReplyDeleteचलने लगी हैं जब से कीबोर्ड पर ये ऊँगलियाँ,
ReplyDeleteशब्दों में भी अब वो सलाहियत नहीं मिलती.
शानदार गजल.
#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०४१
क्या हुआ है जो बदला है इस तरह समां
ReplyDeleteमौसम तो नहीं कह दिया दिवाने को....
बहुत अच्छा लिखा ....
बहुत सुन्दर......विरह पीर
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteमस्त वाली पोस्ट है, लिखते रहिये और हम पढ़ते रहेंगे...
ReplyDeletegazabb gazab gazabb!!
ReplyDeleteअब न चाँद महकता है, न रात संवरती है,
है कैसी यह सुबह जहाँ रौशनी नहीं मिलती.
Totally awesome!! :)
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteहिम्मते मर्दां मददे खुदा :)
ReplyDeleteगहन भाव हृदय की टीस उकेरते हुए ....हर पल एक जैसा तो नहीं होता ....किन्तु धूप और छाँव अपने अपने समय पर आते ज़रूर हैं !! बहुत अच्छा लिखा शिखा !!
ReplyDeleteन जाने कैसा चलन चल रहा है इस ज़िन्दगी में
ReplyDeleteसुकूं की चाहत ही ज़िन्दगी को राहत नहीं देती ...
खूबसूरत ग़ज़ल
आँखें ऐसी चौंधियाई हुई हैं कि दिशा का भान नहीं रहता ,अस्लियत नहीं दिखती .
ReplyDeleteBahut khub
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