все те же
Я тоже была наивной,
В воды Волги опустив ноги
В воды, смешанные с моими слезами
Все равно вспоминала о Ганге.
Горы видела - горы Урала,
Только думала о Гималаях.
И не знала я о том раньше:
Да, зовут их, порой, непохоже,
Только вода все та же
Только земля все та же.
В воды Волги опустив ноги
В воды, смешанные с моими слезами
Все равно вспоминала о Ганге.
Горы видела - горы Урала,
Только думала о Гималаях.
И не знала я о том раньше:
Да, зовут их, порой, непохоже,
Только вода все та же
Только земля все та же.
(шиха варшней)
कैसी पागल थी मैं भी
पाँव डाल कर वोल्गा में
उस पानी में मिलाकर आंसूं
याद करती थी गंगा को
देखा करती थी यूराल और
सोचती थी हिमालय को
कैसे नहीं जानती थी मैं
इनके नाम अलग हो सकते हैं
लेकिन पानी तो यही है
धरती तो वही है.
(शिखा वार्ष्णेय)
बहुत प्यारी कविता......
ReplyDeleteits always a proud feeling ...that you are fluent in Russian too
अनु
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नाख़ून और रिश्ते - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाकई ..बहोत प्यारी रचना ...सीधे दिलसे जो निकली है ....
ReplyDeleteसुन्दर लगी
ReplyDeleteBahut Suder Hai Kavita
ReplyDeleteसबै भूमि गोपाल की ...।
ReplyDeleteवही पानी , धरती वही ! याद वतन मगर आता होगा बहुत :)
ReplyDeleteअनुभूति से उत्पन्न उदगार ऐसे ही उत्कृष्ट होते हैं ।
ReplyDeleteAa gaye naye pate par :) Thank you kaho ..ha ha
ReplyDeleteपानी रे पानी तेरा रंग कैसा - जिसमें मिला दो लगे उस जैसा!!
ReplyDeleteकम शब्दों में कितना भाव! वाह!
ReplyDeleteईश्वर ने तो धरती पानी सब एक ही बनाया । नाम अलग हैं बस । ईश्वर के नाम भी अलग अलग रख दिए ।।सुन्दर भावानुवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव...
ReplyDeletesundar........... behtareen !!
ReplyDeleteबढिया है.
ReplyDeleteवही पानी ,वही धरती पर मन के जुड़ाव को क्या कहा जाय -कोरी बेवकूफ़ी नहीं वह भी !
ReplyDelete???
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना
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