सुना है 21 दिसंबर को प्रलय आने वाली है ..पर क्या प्रलय आने में कुछ बाकी बचा है ?.भौतिकता इस कदर हावी है की मानवता गर्त में चली गई है, बची ही कहाँ है इंसानों की दुनिया जो ख़तम हो जाएगी।मन बहुत खराब है ..
यूँ राहों पर कुलांचे भरती
पल में दिखती पल में छुपती
यूँ राहों पर कुलांचे भरती
पल में दिखती पल में छुपती
मृगनयनी वो दुग्ध.धवल सी
चंचल चपल वो युव शशक सी
घूँघर लट मचल मचल कर
करती ग्रीवा से ठिठोली।
घूँघर लट मचल मचल कर
करती ग्रीवा से ठिठोली।
पगडंडी पर कल मिली थी
करती झाड़ी से अठखेली
कल कल बहती जाती जैसे
पावन, निर्मल कोई नदी सी
बोली में मिश्री सी घोली
बोली में मिश्री सी घोली
गुनगुन भी सरगम सी बोली
तभी प्रकट हुई एक टोली
बहशी, दानव से वे भोगी
इंसानों की इस दुनिया में
पशुवत,कुंठित वे मनोरोगी
पल भर में ही बदल गया दृश्य
क्षत विक्षत अब पडी वो भोली।
Bas dare huye hai...kya kahe
ReplyDeleteBas dare huye hai...kya kahe
ReplyDeleteसच कहा 21 दिसम्बर का ही इंतजार क्यूँ, न जाने हर रोज़ कितनी बार दुनिया मरती है! जिन्दा हे ही क्या! मुर्दों कि बस्तियां हैं बस!
ReplyDeleteरोज मानवता शर्मसार हो रही है।
ReplyDeleteवहशी दरिंदों को छोड़ना नहीं चाहिए।
मानवता गर्त में चली गई है,बचा ही क्या है,,,,
ReplyDeleteबेहतरीन सुंदर रचना,,,,
recent post: वजूद,
लोग भूकंप सुनामी ज्वालामुखी के फटने की सोच में हैं - काला चश्मा पहनकर
ReplyDeletedarawani news thi... jab padha to ek dum se sach me mere sharir me sihran hi ho gayee... aisa bhi log kar sakte hain...:(
ReplyDeletebahut dardnak... marmik chitran..
प्रलय भी संभवतः इससे कम भयावह होगी |
ReplyDeleteप्रलय भले की कपोल कल्पित लगती हो लेकिन सच में ये घृणित कार्य मानवता के लिए प्रलय सामान ही है .नर पिसाचों को अगर कठोरतम सजा भी मिली तो वो भी कम होगी . मानवता को लज्जित किया उन्होंने.
ReplyDeleteयह नरपिशाच हम सबके बीच ही रहते हैं ...
ReplyDeleteजो कुछ हो रहा है प्रलय से अधिक है, ना जाने क्यों ये धरती थमी है??
ReplyDelete:(
ReplyDeleteप्रलय इसी को परिभाषित कर,
ReplyDeleteआज सभ्यता स्वाहा कर दो।
जिन्हें अपनी माँ, गंगा जमुना के साथ बलात्कार करते लज्जा नहीं आई, उनसे क्या आशा की जा सकती है!! एक कुसभ्यता पनप रही है!!
ReplyDeleteमार्मिक रचना!!
:-(
ReplyDeleteकुछ सूझ नहीं रहा..कुछ समझ नहीं आ रहा.........
सुन्न पड़े दिमाग से क्या कहें....
अनु
अब प्रलय को बचा ही क्या है ... प्रलय आ जाए तो कम से कम कोई बचेगा तो नहीं दुखी होने को .... सार्थक लेखन
ReplyDeleteमानवता का हर ओर ह्रास और तार-तार होती इंसानियत के बीच प्रलय आकर भी क्या कर लेगा।
ReplyDeleteप्रलय इसी रूप में या इसी बहाने तो आएगी । संहार का कोई बहाना तो होना चाहिये ।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteवेदना को बखूबी बयान किया आपने .....
ReplyDeleteवाकई क्षत-विक्षत हर मन को कर देने वाल यह घिनौना कृत्य मानवता को शर्मशार करता है .....
ऐसे दानवों के लिये चंडिका बन कर रक्तपान के लिये स्त्री को ही शस्त्र धारण करना पड़ेगा ,लोग तो भीड़ होते है या भेड़िये!
ReplyDeleteसच प्रलय ही है ...हृदय विदारक .....!!
ReplyDeleteबढ़िया है... भाषा और शब्दों के मामले में थोड़ी सावधानी बरतना अपेक्षित है...
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/16.html
ReplyDeleteप्रलय से कम नहीं है ये सब देखना ओर इस समाज को भोगना ...
ReplyDeleteप्रलय मानवता के नाश का दूसरा नाम है और कहते हैं कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है ईश्वर अन्म लेता है अब पता नहीं किस बात का इन्तजार है? हम जिन्दा कहाँ है ? आहत होकर तड़प रहे हैं न जिन्दा है और न मुर्दा
ReplyDeleteतभी प्रकट हुई एक टोली
ReplyDeleteबहशी, दानव से वे भोगी
इंसानों की इस दुनिया में
पशुवत,कुंठित वे मनोरोगी
पल भर में ही बदल गया दृश्य
क्षत विक्षत अब पडी वो भोली।
SACH KAHA AAPANE
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 20 -12 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
मेरे भीतर का मर्द मार दिया जाये ... पुरुष होने का दंभ ...आज की हलचल में .... संगीता स्वरूप
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♥आदरणीया शिखा जी♥
आपको
*जन्मदिन की हार्दिक बधाई !*
**हार्दिक शुभकामनाएं !**
***मंगलकामनाएं !***
राजेन्द्र स्वर्णकार
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तभी प्रकट हुई एक टोली
बहशी, दानव से वे भोगी
इंसानों की इस दुनिया में
पशुवत,कुंठित वे मनोरोगी
पल भर में ही बदल गया दृश्य
क्षत विक्षत अब पडी वो भोली
इन जानवरों - दरिंदों को इंसान कहने वाला हर शख़्स मानसिक विकलांग ही होगा ...
आपकी रचना में बहुत सौम्य संयत भाव से इस घृणित घटना की ओर इशारा किया गया है...
आज हर भारतीय स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहा है ,
क्योंकि ढुलमुल लच्चर शासन व्यवस्था के कारण गुंडे आतंकी अपराधी और भ्रष्टाचारी बेखौफ़ हैं ,
और आम जनता को ही हर कहीं हानि उठानी पड़ रही है ...
अपराधी पकड़ा जाए तो उसे शर्मिंदा होने देने से भी अपराध पर अंकुश की संभावना है ...
कितनी आश्चर्य की बात है कि
पुलिस थानों में अपराधियों को मुंह ढकने में मदद देने के लिए विशेष रूप से थैले सिलवा कर पहले ही से तैयार रखे जाते हैं
लेकिन अफसोस , पीड़ित की मदद के लिए कोई पूर्व तैयारी नहीं होती !
इस देश की व्यवस्था में परिवर्तन की सख़्त आवश्यकता है ...
मन को उद्वेलित करती रचना !
... लेकिन काश , यह विषय रचनाओं के लिए न होता ... हमारी बहन-बेटियों की सुरक्षा पर कभी आंच ही न आई होती ।
सादर
शुभकामनाओं सहित…
ढूंढते है हम वो दरो दिवार जिन पर लिखा पढ़ते थे ....जहाँ नारियां पूजी जाती है , वहां देवता बसते हैं !
ReplyDeleteआज तो जन्म दिन की बधाई देने आया हूँ आपके ब्लॉग पर। जन्म दिन शुभ हो..ईश्वर आपकी लेखनी को और धार दे..सदा प्रसन्न रहें।
ReplyDelete:(
ReplyDeletebahut dukhi hai man... kya karein kya n karein - kuchh samajh nahi aata ...
:(
jindgi salibo ke karib aayee to ham kanun samjhane lge hai
ReplyDeleteआए दिन ऐसी प्रलय आती रहती हैं..~ कुछ समाचार-पत्रों और टी. वी को हिलाकर चली जातीं हैं... कुछ सिर्फ़ घरों के अंदर तहस-नहस मचा कर...... :((
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब .... आप भी पधारो पता है http://pankajkrsah.blogspot.com
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteसही है. ऐसी प्रलय से तो पृथ्वी के नष्ट होने वाली प्रलय ही बेहतर :(
ReplyDeleteअब तो महिषासुर मर्दिनी बनने का वक्त आ गया है। किसी को भी अपना रक्षक ना माने, ये सब भक्षक बन चुके हैं। स्वयं की रक्षा के लिए दुर्गा का रूप धारण करें।
ReplyDeleteजो कुछ हो रहा है उससे तो प्रलय ही ज्यादा अच्छी होगी.
ReplyDeleteरामराम
साक्ष्य है होमोसैपिअन के वहशीपन का
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शुक्रवार, 21 दिसम्बर 2012
बलात्कार एक लाइलाज कैंसर
ReplyDeleteVirendra Kumar Sharma20 December 2012 21:25
मत सोचो की कुछ नहीं होगा ,
होगा कत्ले आम दरिंदों का ,
सबला के हाथों ,उड़ते परिंदों (दरिंदों )का ,
सत्ता के बाजों का .
खाली नहीं जाएगा संघर्ष मौत के साथ
जूझती उस फिजियो का जो जीना चाहती है .
भर दो मिर्ची लाल, आँखों में इनकी ,
भर दो मलद्वार में .
याद आये इन्हें छटी का दूध .
ReplyDelete
परवाज़ ज़िन्दगी की हौसलों से भरी जाती है अपने आप को उस युवा सम्राट में शामिल न करो जो शान्ति की बात भी वीर रस में करता हुआ बाजू चढ़ा लेता है .केजरीवाल अकेले नहीं हैं
ReplyDelete.अच्छे लोग राजनीति में आयेंगे तो रास्ता बनेगा .
ये वहशी भी दुम दबाके भागेंगे .
प्रतीकों की मार्फ़त कह दी व्यथा कथा इस युग की मृगनयनी ,भोली हिरनिया की ........लेकिन
वन्य जीवों के शिकार पे तो अब प्रतिबन्ध है .......................मानवी भी रहेगी सुरक्षित ,हौसला न छोड़ो .........
सीखो अब मार्शल आर्ट वक्त है .
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी सच निकली है शिखाजी...इंसान ख़त्म नहीं हुआ तो क्या हुआ इंसानियत तो मर ही चुकी है।।।
ReplyDeleteकयामत सिर्फ सृष्टि समाप्त होने पर ही नहीं आती , मानवीय मूल्यों की गिरावट तो इस स्थिति तक पहुँच ही चुकी !
ReplyDeletevaise duniya bach gayee lagti hai.....
ReplyDeleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteबची ही कहाँ है इंसानों की दुनिया जो ख़तम हो जाएगी!
ReplyDeleteTrue...
बहुत ख़ूब वाह!
ReplyDeleteआप शायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
ReplyDeleteनववर्ष शुभ हो ,खुश हाली लाये चौतरफा आसपास आपके .नव वर्ष शुभ हो ,खुश हाली लाये चौतरफा आपके आसपास .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
1mVirendra Sharma @Veerubhai1947
आरोग्य प्रहरी ...... http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2012/12/blog-post_8739.html …
संसार का सच बताती रचना पर बधाइयाँ। शिखा जी ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय का नमस्कार
ReplyDeleteआपने सच ही कहा है कि मानवता पर दानवता भारी पढ़ रही है।और एसी दानवता को क्या प्रलय नष्ट करेगी यहाँ तो महाप्रलय की आवश्यकता होगी।मेरे आयुर्वेदिक ब्लागो पर आपको तथा आपके पाठकों का सादर आमंत्रँण है। मैं आपके व्लागों पर आया तो अपने को आपका फोलोअर बनाने से न रोक पाया मेरे व्लाग एग्रीगेटर राष्ट्रधर्म पर आपके व्लाग को भी लगा रहा हूँ।
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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लोक अपनी सत्ता को पहचानेगा .व्यर्थ न जायेगी यह शहादत यह जंग जीवन की मौत के संग ,मौत के निजाम के संग .श्रृद्धांजलि निर्भया .हाँ !प्रलय बाकी है .इस रचना का वजन तब से अब और भी
ReplyDeleteबढ़ गया है दिनानुदिन बढ़ेगा .
कृपया अठखेली कर लें अट -खेली को .
सच प्रलय इससे भयंकर नहीं हो सकता ...बहुत सटीक प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeleteप्रलय आ ही गयी होती तो अच्छा था, खैर नहीं आयी , इसे जीवनदान समझा जाए !!!
ReplyDeletelive fearless, not careless!!!!
'...पल भर में ही बदल गया दृश्य / क्षत विक्षत पड़ी अब वो भोली सी...' उस दर्द को, अगम वेदना को व्यक्त कर रही है कविता जिसके लिए शब्द कम भी पड़ रहे हैं और कमज़ोर भी....
ReplyDelete