मैं नहीं चाहती
लिखूं वो पल
तैरते हैं जो
आँखों के दरिया में
थम गए हैं जो
माथे पे पड़ी लकीरों के बीच
लरजते हैं जो
हर उठते रुकते कदम पर
हाँ नहीं चाहती मैं उन्हें लिखना
क्योंकि लिखने से पहले
जीना होगा उन पलों को फिर से
उखाड़ना होगा
गड़े मुर्दों को
कुरेदने होंगे
कुछ पपड़ी जमे ज़ख्म
और फिर उनकी दुर्गन्ध
बस जाएगी मेरे तन मन में
और बदबूदार हो जायेगा
आसपास का सारा माहोल .
हाँ इसीलिए
नहीं लिखना चाहती मैं वो पल
पर मेरे ना लिखने से
वो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
कि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
कुछ भी न लिखते हुए,
ReplyDeleteबहुत कुछ लिख दिया!
यही कम्माल है आपका
वेल एक्सप्रेस्ड शिखा जी!
मैं लिखूं कुछ... तो.. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ऐज़ युज़ुयल ... कविता बहुत अच्छी लगी.. अब और क्या लिखूं? तारीफ़ करने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं..
ReplyDeleteसुपर्ब रचना ... पर चाहो न चाहो , जीना ही पड़ता है . मुंदी आँखों के मध्य भी जीना पड़ता है
ReplyDeleteसच है-
नहीं लिखना चाहती मैं वो पल
पर मेरे ना लिखने से
वो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
कि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
यादों कों कागज़ पे उतारने से पहले की कशमकश कों लिखा है आपने ... सच अहि की जीना पढता है उन लम्हों कों लिखने से पहले ... पास उन अच्छी पलों कों तो लिखना चाहिए ... दुबारा जीने में भी तो नाजा है उन्हें ...
ReplyDeleteबस लिखती रहिए ... सब से जरूरी बात यही है !
ReplyDelete:) par likhkar dil to halkaa kar liyaa naa
ReplyDeleteलिख डालिए.....भड़ास निकल जाए तब ही सुकून मिलेगा.......
ReplyDeleteफिर वो ख़याल आपको गाहे -बेगाहे सतायेंगे भी नहीं.....
:-)
सस्नेह
लिखना तो एक तरह से सुख-दुःख बाँटना होता है...
ReplyDeleteएक अच्छी सी रचना...
ReplyDeleteना कहते हुए भी कुछ तो कहा ही गया है...
जो हम सभी तक भी पहुंचा ...
हक है तुम्हें लिखने का, लिखती रहो...
गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
ReplyDeleteकि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
पलों का सार्थक उपयोग! :)
पर मेरे ना लिखने से
ReplyDeleteवो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
बिल्कुल सच कहा ... बहुत जरूरी हो जाता है लिखना ...
नहीं लिखना चाहती मैं वो पल पर मेरे ना लिखने से वो मर तो ना जायेंगे सांस लेते रहेंगे मन के किसी कोने में गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे कि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
ReplyDeleteBahut hi sundar rachna.....
beautiful lines
ReplyDeleteना लिखते- लिखते भी जाने कितना लिख दिया. कई बार मन की अकुलाहट छुपाने से कुछ सनसनाहट होती है जीवन में , हा हा , अजीब फंदा है ना . अब लिख ही डाला और भी जोरदार और भाव-प्रवण
ReplyDeleteजिस अफ़साने का अंजाम मुमकिन न हो , उसे भूल जाना ही अच्छा !
ReplyDeleteso nice!!!
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteमाना के जख्म फिर से हरे हो जाएगे मगर लिखने से हो सकता है कुछ सुकून आजाये दिल में दबा के रखने से अच्छा है लिख डालो... :)क्यूंकि यह ज़रूरी तो नहीं की आँखों में दरिया में तैरते हुए वो सारे पल दर्द भरे ही हों हो सकता है कुछ एक ऐसे भी हो जिन्हें एक बार फिर जी लेने का मन कर जाये :) इसलिए लिखते रहो ...लिखना बहुत ज़रूरी है।
ReplyDeleteसंवेदना की भाषा और अभिव्यक्ति की भाषा के बीच एक अन्तराल है। संवेदना के स्तर पर जी लेने के बाद ही लिखने की बारी आती है, पहले नहीं। लिखने के लिए थोड़ा पीछे मुड़ना पड़ता है अत: अनुभूति के साथ एक अनकहा समझौता करना पड़ता है।
ReplyDeleteओह ...गहन अभिव्यक्ति ....सच मे कुछ बातें भूलना कितना मुश्किल होता है ...!!
ReplyDeleteन चाहते हुए भी वो जख्म हो गये हरे और आप लिख बैठी कुछ तो...मगर फिर भी जरुरी है भूल कर उन जख्मों को खिलखिलाये,मुस्कुरायें आप हमेशा की तरह...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति शिखा जी।
ओह ....न जाने कैसे होते हैं यह पल ....जिनको नहीं चाहते याद करना पर फिर भी सिर उठा लेते हैं ...न लिखने की बात कह कर भी वो पल जीवंत ही हो उठे
ReplyDeleteनहीं लिखना चाहती मैं वो पल
पर मेरे ना लिखने से
वो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
इस रचना ने मेरे मन मेन भी दबे हुये पलों को जैसे सामने ला खड़ा किया है .... पर मैं भी नहीं चाहती कुछ लिखना :)
ज्यादा भड़काएं तो लिख डालियेगा...
ReplyDeleteलिख ही देना चाहिए, इसलिए तो मैं भी अक्सर लिख देता हूँ कुछ से कुछ मन की बकवास बातें ;)
ReplyDeleteBeautifully written. U writers r blessed by god to express ur feelings so nicely. As far as old scars r concerned, they do pain but they r the ones that keep u reminding, & make u strive to achieve nothing but the best. I'm happy for u that u r able to find that direction & achieve what u deserved since very long
ReplyDeleteThanks dear :).
Deleteमन की संवेदना को लिख कर अभिव्यक्ति कर दे,या किसी के साथ शेयर कर ले,मन हल्का हो जाता है,मेरा मानना है लिखकर ही अपनी भड़ास निकाल लेनी चाहिए,,,,,
ReplyDeleteमन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
aap bahut hi sundar rachna likhti hai Didi ...
ReplyDeleteशब्दों का वो विन्यास जो महका न सके मन को ,उन्हें अक्षरों में विभक्त कर पुनर्विन्यास तब तक करते रहें जब तलक उनमें खुश्बू न आ जाए |
ReplyDeleteसुन्दर कविता....प्रभावित करते भाव....
ReplyDeleteमन को तो कहना पड़ेगा, लिखिये पर छापिये मत, औषधि भी छिपा कर रखनी पड़ती है कभी..
ReplyDeleteनहीं लिखना चाहती तब ये हाल है
ReplyDeleteलिखना होगा तो जाने क्या होगा
nice potry....
ReplyDeleteगाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
ReplyDeletekya bhav piroye hain aap ne
badhai
rachana
na cahte hue bhi likh gayi wo pal...sunder ahsaas
ReplyDeleteकही अनकही बातों का दर्द ..
ReplyDeleteहम सब में कहीं सांझा है..
बहुत ही सुन्दर शिखा जी .........
लिखती रहिए...
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित पक्तियां
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
ReplyDeletebhawbhini......
ReplyDeleteनहीं लिखना चाहती मैं वो पल
ReplyDeleteपर मेरे ना लिखने से
वो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
कि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
मन को गहरे तक छू गई एक-एक पंक्ति...
atit ki panno par utarney se man fir usi atit ki aur chala jata hai jisse hum yada kada peechha chhurana chahte hain, sundar rachna
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर।
लिख देना यूँ ही नहीं होता , बारहा गुजरना होता है उस दर्द से !
ReplyDeleteरिसता है दर्द ना लिखते हुए भी , दिखता नहीं हो भले ही !
बहुत बढ़िया !
अभिव्यक्ति को राह दो ! सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteपर मेरे ना लिखने से
ReplyDeleteवो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में ....बहुत बढ़िया
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है आपातकाल और हम... ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
ReplyDeleteन यों चैन ,न वों चैन - इसलिये लिखती रहिये !
ReplyDeleteshikha jee....ghavon se chahe durgandh faile ya batabaran pradushit ho..aap ek acchi lekhika hain isliye man ke kisi bhee kone me utpaat mach rahe bicharo ko kisi lekh kavita ya ghazal ke bahane aapko nikalna hee padega....nahi likha to aapkee bechainee he badegi ..sadar badhayee ke sath...
ReplyDeleteलिखना ही जीवन है।
ReplyDeleteकुछ न कहा और सब कुछ कह दिया...बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteलिखने से पहले वैसे भी एक कवि की परीक्षा ही होती हैं उसकी सोच और शब्दों के ताल मेल के साथ
ReplyDeleteनहीं लिखना चाहती मैं वो पल
ReplyDeleteपर मेरे ना लिखने से
वो मर तो ना जायेंगे
सांस लेते रहेंगे
मन के किसी कोने में
गाहे बगाहे भड़काते रहेंगे मुझे
कि मैं लिखूं कुछ ...कुछ तो...
मन को छू गई एक-एक पंक्ति...
likh to diya ........... ab bachche ki jaan logi kya:)
ReplyDeleteबिना लिखे बहुत कुछ कहा जाता है..
ReplyDeletebahut hi sundar kavita , hame khushi hai ki hum is blog par aaye .
ReplyDeleteजो कविता में ढलना चाहे, उसे रोकना ठीक नहीं है
ReplyDeleteबेहद सुन्दर
ReplyDelete(अरुन=arunsblog.in)
लिखो तो.....
ReplyDeleteकल 06/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut kuch kah gaye yah pal
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना है शिखा जी.....
ReplyDelete