पुलिस कहीं भी हो हमेशा ही डरावनी सी होती है .इस नाम से ही दहशत का सा एहसास होता है .पुलिस नाम के साथ ही सख्त, क्रूर, डरावना, भ्रष्ट, ताक़तवर, असंवेदनशील और भी ना जाने कितनी ही ऐसी उपमाएं स्वंम ही दिमाग में चक्कर लगाने लगती हैं. यानि हाथ में डंडा लिए और कमर में पिस्तोल खोंचे कोई पुलिस वाला किसी यमराज से कम नहीं लगता .यूँ तो पुलिस से बिना किसी वजह के डर मुझे भारत में भी लगता था.पर अपनी भारतीय पुलिस तो पुलिस कम और एक्टर ज्यादा होती है आखिर दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में और मैलो ड्रामा हम ही बनाते हैं तो उनका प्रभाव हर तबके और पेशे पर पड़ना लाज़मी है.सो वहां फिर भी मामले रफा दफ़ा आसानी से हो जाते हैं. परन्तु लन्दन में मामले रफा दफ़ा करना कम से कम एक आम आदमी के बस की बात तो नहीं होती.
तो यहाँ की पुलिस मुझे ज्यादा खौफनाक नजर आती है.उनका डील डौल , चेहरे के भाव, बॉडी लैंगवेज़ और छवि- जब भी कान फाडू सायरन बजाती इनकी गाड़ियाँ पास से गुजरती हैं ,बिना किसी गलती या गुनाह के मेरे दिल की धड़कन दोगुनी तो हो ही जाती है. हालाँकि मानव अधिकारों की मजबूती वाले इस देश में इनसे इतना खौफजदा होने का कोई कारण नहीं परन्तु फिर और कोई कारण मुझे समझ में नहीं आता तो सोचती हूँ जरुर इस डर के पीछे होगा "राज कोई पिछले जनम का".इन्हीं किसी की गोली से हुई होगी मेरी मौत. ऐसे में भला हो ओलंपिक और एक सिमोंस लोरेंस नामक पुलिस अफसर का जिनका पिछले साल नॉटिंघम कार्निवाल के दौरान एक विडिओ यू ट्यूब पर बेहद सराहा गया इस विडियो में एक पुलिस अफसर को भी आम जनता की तरह कार्निवाल में ख़ुशी मनाते और झूमते देखा गया जिससे उत्सवी माहौल में और भी इजाफा हुआ.
और इसी से प्रेरणा लेकर लन्दन पुलिस ने इन ओलम्पिक खेलों के दौरान एक बहुत ही सकारात्मक कदम उठाया है.
वह यह कि अब लन्दन पुलिस को खेलों के दौरान पहरेदारी और सुरक्षा करते समय जनता के सामने मुस्कुराते रहना होगा.यानि अपना काम तो करना होगा पर हँसते मुस्कुराते हुए.ओलम्पिक सुरक्षा के इंचार्ज असिस्टेंट कमिश्नर क्रिस अलिसन ने कहा है. " हम अपने अधिकारीयों को कह रहे हैं कि हमें अपना काम पूरी मुस्तैदी से करना है, अपराधों को रोकना है , शांति बनाये रखनी है परन्तु साथ ही साथ अपने काम को आनंददायी भी बनाना है"वो भी ऐसे समय में जब लन्दन पुलिस पर रंगभेद और भ्रष्टाचार के काफी आरोप लगे.और इसके चलते कई पुलिस अफसरों की पेंशन रोक दी गई और कईयों को निलंबित कर दिया गया.अब उसी की भरपाई के लिए ओलम्पिक खेलों के दौरान अतिरिक्त भार उनपर सौंपा जाएगा.अपनी ड्यूटी के अलावा भी अतिरिक्त घंटे उन्हें अपने काम को देने होंगे.और सबसे अच्छी और बड़ी बात यह कि पिछले समय में इन इल्जामो से जूझती लन्दन पुलिस के लिए यह जीवनभर का महत्वपूर्ण और सुखद अनुभव है और इसमें एक हैप्पी पुलिस की छवि लोगों को दिखाने का यह सबसे अच्छा और सुनहरा मौका है.
हालाँकि ये प्रयास शाही शादी के दौरान भी किया गया था परन्तु वह एक दिन की बात थी अब सत्तर दिनों तक पुलिस के चेहरे पर मुस्काम कायम रखना शायद मुश्किल होगा. परन्तु लन्दन उत्साह और ख़ुशी से छलक रहा है अत: उम्मीद है कि ऐसे माहौल में पुलिस भी उसी रंग में रंग जाएगी.
जो भी हो मुस्कान ओढ़ कर काम करने के परिपत्र ओलम्पिक में मुस्तैद सभी अधिकारियों को दिए जा चुके हैं
अत: परम्परावादी कठोर चेहरे वाली पुलिस से इतर खुशगवार पुलिस से मिलना खासा दिलचस्प होगा.
आखिर पुलिस वाले भी इंसान होते हैं और उनका काम जनता को डराना नहीं उनकी सुरक्षा करना होता है. और हो सकता है कि लन्दन और ओलम्पिक के अनेकों स्मृति चिह्नों के साथ ही "लाफिंग बुद्धा" की तर्ज पर "लाफिंग पुलिस" के पुतले भी बाजार में आ जाएँ.यदि ऐसा हुआ तो एक फुल साइज का बुत हम भी अपने घर में जरुर सजायेंगे क्या पता इन्हीं की बदौलत मेरे पिछले जन्म का डर भी कुछ कम हो जाये. इसलिए मेरी तरफ से तो लन्दन पुलिस के इस प्रयास को - हिप्प हिप्प हुर्रे ...
(दैनिक जागरण में लन्दन डायरी स्तंभ के तहत प्रकाशित )
kitni bhi tareef kar lo par hamara dar to nahi nikalne wala :-) lekh badhiyaa laga
ReplyDeleteआज का यह आलेख बहुत अच्छा लगा.. और सबसे बड़ी बात कि पुलिस की एक और छवि देखने को मिली.. पुलिस हमारे समाज और देश की रक्षक है.. इनकी छवि का अच्छा होना भी ज़रूरी है.. और इनका भी अच्छा होना ज़रूरी है.. हम आम जनता को भी यह समझना होगा कि पुलिस भी इंसान हैं ... जो कि बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं.... रही बात पुलिस से डर की .. तो मुझे कभी पुलिस से डर नहीं लगा.. अगर हमें कानूनी जानकारी है.. .. तो इनसे डरने की ज़रूरत नहीं है.. कुल मिला कर बहुत अच्छा और "खूबसूरती" से लिखा गया आलेख..
ReplyDeleteऔर यही कोशिश फिर इनकी आदत बन जायेगी .:) चलिए कुछ तो अच्छा होगा ..पर डर कम नहीं होगा ..नाम ही बहुत है डराने को :)
ReplyDeleteअभी तो मैं सिर्फ़ ओलम्पिक खेल देखने के लिए ही सोच रहा था, अब पुलिस को देखने के लिए भी समय निकालना पड़ेगा।
ReplyDeleteएक ऐसे विषय पर आपने लेखनी चलाई है जो प्रायः लोगों की नज़र में नहीं पड़ती। उनका काम सबसे महत्व पूर्ण और अंग्रेज़ें की भाषा में कहें तो थैन्कलेस होता है!
** पहली पंक्ति के अंत में समाइली लगाना भूल गया था .. :)
डर शायद कुछ कम ज़रूर हो सकता है मगर निकलने वाला नहीं :)
ReplyDeleteRecall what Justic Mulla Of Allahabad High Court had to say in 1961 about police ...' “THERE IS NO MORE ORGANISED LAWLESS CRIMINAL FORCE IN THE COUNTRY THAN THE INDIAN POLICE FORCE”. The recent mid night Delhi police action at Ram Lila Grounds against Baba Ramdeo's campaign against black money reinforces the observation on Indian Police Force by Justice Mulla in 1961.Nothing has changed all these years...
ReplyDeleteपुलिस कहीं की भी हो , डरावनी तो लगती है . लेकिन यहाँ तो पुलिस से शरीफ लोग ही डरते हैं . जिन्हें डरना चाहिए उन्हें कोई डर नहीं लगता . हालाँकि अब यहाँ भी पुलिस की छवि में सुधार हुआ है .
ReplyDeletesmiling policemen!!! sounds incredible...lets wait n watch how much it affects our Indian Police!
ReplyDeleteलंदन की पुलिस और इंडिया की पुलिस में फर्क हैं और रहेगा ....
ReplyDelete'''और इसी से प्रेरणा लेकर लन्दन पुलिस ने इन ओलम्पिक खेलों के दौरान एक बहुत ही सकारात्मक कदम उठाया है.
वह यह कि अब लन्दन पुलिस को खेलों के दौरान पहरेदारी और सुरक्षा करते समय जनता के सामने मुस्कुराते रहना होगा.'''....उम्मीद करते हैं कि लंदन में उन दिनों ऐसे ही पुलिस मिले ....ताकि वहाँ जाने वाले किसी भी दर्शक को ....अपने देश से बाहर होने का एहसास ना हो
london police ke liye ham bhi hip hip hurreh karen jamta nahi par.. fir bhi hip hip hurrey........
ReplyDeleteहमारे यहाँ की पुलिस बोले तो दबंग सलमान खान.........
ReplyDeleteहाँ परदेसी पुलिस वालों से डर लाज़मी है.........भेद भाव तो वो करते ही हैं.....२०० साल गुलाम रखने का घमंड अब भी है शायद उन्हें....
चलिए अब मुस्कुरा रहे है तो अच्छा है.....
:-)
एक अच्छा प्रयास ... और उसे उतनी ही अच्छी तरह लिखा गया ... आभार
ReplyDeleteबिलकुल सही लिख आपने पुलिस का चेहरा हमेशा डरावना होता है ...काश इसमें संवेदनशीलता आ जाये
ReplyDeleteSamvedansheel police wale bhee hote hain.....aakhirkaar isi samaj ka wo darpan hote hain,upaj hote hain!
ReplyDeleteएक अच्छा प्रयास
ReplyDelete..बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने शिखाजी!...वैसे पुलिस से डरना हमें बचपन ही से सिखाया जाता है...इसमें दोष तो पुलिस फ़ोर्स का है ही कि ये लोग समाज के साथ मित्रवत व्यवहार नहीं करते!
ReplyDeleteएक कहावत है कि,,,,,पुलिस वालो की न दोस्ती अच्छी होती है,न दुश्मनी,,,,जितना होसके
ReplyDeleteइनसे दूर ही रहे,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
पता ना था की वहा भी पुलिस की वही छवि है जो जो यहाँ पर है , ताकत और सत्ता का दुरुपयोग शायद हर जगह एक सा ही किया जाता है | हमरे यहाँ तो बड़े बड़े पुलिस को मानवीय बनाने बनाते हर गये अब देखते है की वहा क्या होता है |
ReplyDeleteउम्मीद है हमारे खिलाडी वहा जा कर "लाफिंग पुलिस " नहीं बल्कि कुछ मैडल ले कर आयेंगे
मुझे ऐसा लगता है कि पुलिस से डर शरीफों को ही लगता है बदमाश तो उनके साथ गलबहिंयाँ करते हैं... मेरा यह भी मानना हैं कि पुलिस के जवान को सख्त और चुस्त रहना ही चाहिए लेकिन सिर्फ बदमाशों के लिए... शरीफों से तो प्यार से पेश आना चाहिए... भारत में यही नहीं हो रहा...
ReplyDeleteयहाँ तो हँसे न, बस अच्छे से बात कर लें ,इतना ही बहुत है | आप तो बस मुस्कुराती रहें और आपके साथ आपकी पुलिस भी |
ReplyDeleteअपना कार्य मन से कर के तो प्रसन्न रहा जा सकता है..
ReplyDeleteसकारात्मक और सुन्दर लेख....बधाई.
ReplyDeleteऔर हो सकता है कि लन्दन और ओलम्पिक के अनेकों स्मृति चिह्नों के साथ ही "लाफिंग बुद्धा" की तर्ज पर "लाफिंग पुलिस" के पुतले भी बाजार में आ जाएँ.
ReplyDeleteकुछ तो सकारात्मक सोचा है .... वैसे यहाँ तो शरीफ इंसान ही डरता है पुलिस से ...बाकी से पुलिस डरती है :)
"मुझे तो सब पुलिस वालों की शक्ल एक सी लगती है ..."
ReplyDelete(शोले के जय से उधार लिया है) फिलहाल आप भी इस से ही काम चलाये ... ;-)
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ... ब्लॉग बुलेटिन
बढ़िया पोस्ट है, लीक से हटकर ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
मुस्कराती पुलिस लन्दन की , बढ़िया जानकारी . पुलिस से डरने का नहीं , वो तो मामू होते है . हा हा .
ReplyDelete;-)
ReplyDeleteअगर पुलिस के बर्बर चेहरे की जगह मुस्कुराता हुआ चेहरा समाज के सामने होगा तो निश्चित रूप से ओलम्पिक देखने वालों का ही नहीं आम व्यक्ति का उत्साह भी दोगुना हो जायेगा , और यह एक सकारात्मक कदम है, तो निश्चित रूप से अच्छा प्रभाव तो होगा ही ...आपको अनेकों शुभकामनाएं ....अब आपको पुलिस से डरने की जरुरत नहीं ....!
ReplyDeleteपुलिस की छवि ऐसी बन गयी है कि शरीफ लोंग ही उनसे ज्यादा भय खाते हैं . सीमित साधनों में मानसिक , प्रशासनिक और राजनैतिक दबाव को झेलते इन लोगो को भी एक मुस्कराहट ज़रूरी है , स्वयं उनके लिए और आम जनता के लिए भी !
ReplyDeleteकल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये
"लाफिंग पुलिस" के पुतले भी बाजार में आ जाएँ.यदि ऐसा हुआ तो एक फुल साइज का बुत हम भी अपने घर में जरुर सजायेंगे क्या पता इन्हीं की बदौलत मेरे पिछले जन्म का डर भी कुछ कम हो जाये. .....सही कहा....
ReplyDeleteरोचक लेख .....
waah ...interesting ....good change of image ...
ReplyDeletebadhia laughing police ....!!
मतलब लंदन पुलिस भी अब एयरहोस्टेस टाइप हो जायेगी। मुस्कराती रहेगी। :)
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteफिर तो हंसती चहकती शिखा जी कैसी लगेंगीं
वह चित्र भी 'स्पंदन' पर देखने को
मिल सकेगा हमें.
कुछ वर्षों पहले हिन्दुस्तानी पुलिस को भी ऐसा ही आदेश जारी हुआ था कि थाने आने वालों को मुस्कुरा कर श्रीमान कह पुकारा जाए, पानी आदि से स्वागत किया जाए, रिपोर्ट बाद में लिखी जाए
ReplyDeleteपक्का, वह आदेश अभी भी वापस नहीं हुआ होगा
अच्छा ??? सच में??मतलब ये अंग्रेज सब हम से ही सीखेंगे .
Deleteहँसते हुये पुलिसवाले !
ReplyDeleteसोच कर ही अजीब लर रहा है.
मेन बात आप गोल कर गयीं...ये बताइए की डर लगने की वजह क्या थी....मैं जानता हूँ जरूर कुछ तो किया होगा आपने :D
ReplyDeleteshh....सबके सामने नहीं बोलते :):).
Deleteएक सकारात्मक विचार कैसे पूरे परिवेश को बदल डालता है -यह एक उदाहरण है !
ReplyDeleteटिप्पणी कर तो रही हूं लेकिन पता नहीं पहुंचेगी या नहीं। क्योंकि कोई भी ब्लागस्पाट पोस्ट ओपन नहीं हो रही है। यह कॉपी है जो ओपन हई है। पोस्ट बेहद प्रेरक है।
ReplyDeleteलगता है पुलिस हर जगह की एक सी है ... पर ऐसी कोशिशें होती रहनी चाहियें ... कितना अच्छा होगा आने वाली पीड़ी कहे .... पुलिस हमेशा हँसती क्यों रहती है ... कभी सीरिअस क्यों नहीं होती ...
ReplyDeleteहलके फुल्के अंदाज़ में लिखा आपका लेख अच्छा लगा ...
हा हा अच्छा आदेश है पर सचमुच लागू हो तब न इगलेंड का पता नहीं इंडिया में तो आदेश सिर्फ आदेश ही होता है केवल कागजों पर
ReplyDeleteaapaka andaje bayaan hamesha khubsurat hota hai .lekin ye wakaya jitani sadagi se pesh kiya hai lajawab .
ReplyDeleteयह प्रयोग तो बाकी देशों में भी करना चाहिये विशेषकर भारत में जहाँ पुलिस की छवि बहुत ही असहिष्णु बल की है.
ReplyDeleteसुंदर जानकारी.
@ पाबला जी - अभी तक आदेश वापिस तो नहीं हुआ है बस उसे दूसरी तरह से निभाया जा रहा है, थाने आने वालों को मुस्कुरा कर (जोर से) श्रीमान पुकारा जाता है, पानी (पीने का नहीं) आदि (डंडा पानी) से स्वागत किया जाता है, रिपोर्ट बाद में लिखी जाए (तब तक तो रिपोर्ट लिखवाने वाले निकल लेता है )
ReplyDeleteपुलिस के नाम से तो हमें भी खूब डर लगता है शिखा :( हिन्दुस्तानी पुलिस की भाषा से और भी ज़्यादा :( पुलिस को तो मुस्कुराने की भी ट्रेनिंग देनी पड़ेगी :) नहीं क्या?
ReplyDeleteरोचक प्रयोग है। यह तो भारत में भी होना चाहिए। लॉफिंग पुलिस..वाह! क्या आइडिया है!
ReplyDeleteमैंने कुछ दिनों पहले ही पुलिस का रौद्र रूप देखा था, अच्छा लग रहा है लंदन पुलिस ऐसा प्रयोग कर रही है भारतीय पुलिस को भी इससे सीख लेनी चाहिए।
ReplyDeleteशिखा जी, यह लेख २४ जून के दैनिक नवभारत के बिलासपुर संस्करण में छपा है..
ReplyDeletehttp://epaper.navabharat.org/magazinePdf/Avkash.pdf
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