
सपने भी कितनी करवट बदलते हैं न .आज ये तो कल वो कभी वक्त का तकाज़ा तो कभी हालात की मजबूरी और हमारे सपने हैं कि बदल जाते हैं. इस वीकेंड पर एक पुरानी मॉस्को में साथ पढ़ी हुई एक सहेली से मुलाकात हुई . १५ साल बाद साथ बैठे तो ज्यादातर बातें अब अपने अपने बच्चों के कैरियर की होती रहीं. मुझे एहसास हुआ कि कितना समय बदल गया.. एक वो दिन थे जब हम दोस्त मिलकर बैठते थे तो बातें हमारे अपने कैरियर की हुआ करतीं थीं. सबका लगभग एक सा ही मकसद, कि पढाई , उसके बाद अच्छी सी जॉब, जी भर कर काम करेंगे फिर काम से मन थोडा भरेगा तो शादी कर लेंगे , फिर जी भर के मस्ती,घूमना फिरना और फिर उसके बाद बच्चे. कितनी आसान जान पड़ती थी जिंदगी. अपने इस बने बनाए प्लान से इतर भी कुछ हो सकता है, ये न तब सोचने का मन था न ही जरुरत.
मॉस्को से वापस आते ही दिल्ली में एक न्यूज चैनल में असिस्टेंट न्यूज प्रोड्यूसर की जॉब मिल गई शुरू में तो सब अरबिक- ग्रीक लगा परन्तु धीरे धीरे काम समझ में आने लगा तो लगा कि पता नहीं क्यों लोग अपनी जॉब से अघाए घूमते हैं मेरे लिए तो जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन थे वे. सुबह काम पर निकलते वक्त जरुर हबड़- तबड होती परन्तु शाम को लौटते वक्त एक ऐसी संतुष्टि का एहसास होता जैसे एवरेस्ट फतह करके आये हैं. मुझे अपने काम में मजा आता था. शुरू के तीन महीने ट्रेनिंग के थे उसमें हमें फाईनल न्यूज से पहले के जो काम सीनियर कह देते थे हम कर देते थे. हिंदी टाइपिंग की ए बी सी आती नहीं थी. तो वही अपनी कछुआ चाल से १-१ उंगली से किट किट करके अपनी शिफ्ट की २-४ न्यूज स्टोरी बना ही लेते थे, कुछ वॉयस ओवर किये और बस हो गया. सामान्यत: इसी तरह का रूटीन हुआ करता था.
परन्तु वक्त एक सा तो चलता नहीं एक दिन अपनी सुबह की शिफ्ट में मैं ऑफिस पहुंची तो देखा हमारा हिंदी का न्यूज एरिया एकदम सूनसान सा पड़ा है.सोचा आ जायेंगे कुछ देर में लोग, और एक कंप्यूटर पर बैठ कर मैं अपनी किट पिट करने लगी परन्तु १० मिनट हो गए फिर भी कोई नहीं दिखा और दिन की पहली न्यूज जाने का समय पास आ रहा था.आखिरकार एक सीनियर रिपोर्टर दिखाई पड़े तो उन्हें स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि किसी ग़लतफ़हमी के चलते आज अचानक सबने ही इस शिफ्ट से ऑफ ले लिया है. अब तो जैसे मेरे सिर पर आसमान टूट पडा. अब क्या होगा?मैं अकेली ? न्यूज तो जानी है. मन में आया कि मैं ही क्यों आई आज .ट्रेनी की तो ड्यूटी लगती नहीं है.पर अब तो आ गई थी कुछ नहीं हो सकता था. मैं चुपचाप खड़ी थी. मेरी जिम्मेदारी थी बताना कि कोई नहीं है और मैंने बता दिया अब इन्चार्ज लोग जाने क्या करना है. तभी इंग्लिश न्यूज एरिया से आवाज आई.अरे तुम हो न, करो तैयार. बाकी हम हैं न संभाल लेंगे. मुझे काटो तो खून नहीं अरे!!!.मैं अकेले कैसे चार लोगों का काम करुँगी रिपोर्ट लेना, न्यूज ढूँढना , स्टोरी बनाना, ग्राफिक्स डालना , अनुवाद करना और उसपर सबसे बड़ा काम हिंदी में टाइप करना ये सब करते करते मुझे रात हो जायेगी.हाथ पैर मेरे पहले ही फूले हुए हैं. मेरा सफ़ेद चेहरा देख फिर उस तरफ से आवाज आई अरे डरो मत तुम शुरू तो करो मैं हूँ न अभी डेढ़ घंटा है फटाफट न्यूज बनाकर ले आओ फिर मैं देखता हूँ. मैं जड़वत सी अपने वर्क स्टेशन पर गई और किसी तरह काम में जुट गई टाइप करना मेरे बस का था नहीं किसी तरह जल्दी जल्दी पेपर पैन से पूरी न्यूज तैयार की और सीधा पहुँच गई उन्हीं महानुभाव के पास कि ये लीजिए अब जो करना है आप जाने .बुलेटिन जाने में १० मिनट बचे थे वो कंप्यूटर पर बैठे और मुझसे बोले इसे जितनी तेज पढ़ सकती हो पढ़ती जाओ बस. मैंने बिना सोचे समझे नॉन स्टॉप पढ़ना शुरू कर दिया और उनकी उँगलियाँ टकाटक टकाटक कीबोर्ड पर ऐसे चलने लगीं जैसे उनमें कोई मशीन लगी हुई थी. मैं जरा नजर उठाकर उँगलियाँ देखने लगती तो आवाज आती पढ़ो न.और मैं फिर पढ़ने लग जाती आखिर कार २० मिनट का बुलेटिन ८ मिनट में उन्होंने टाइप किया और मुझे कहा जाओ भाग कर न्यूज रूम में देकर आओ. मैंने यंत्रवत उनकी आज्ञा का पालन किया और आकर देखा तो वे बड़े इत्मीनान से किसी से कह रहे थे “आज सबके सब इस शिफ्ट से छुट्टी कर गए, शिखा ने अकेले निकाला है आज बुलेटिन”. मैं एकटक उन्हें देखती रह गई ये आदमी है या मशीन मुझे यूँ घूरते देख उनके साथ खड़े व्यक्ति ने कहा अरे ये हमारे सुपर मैन हैं,कुछ भी कर सकते हैं. तुम्हें पता है ये २ कंप्यूटर पर एक साथ, एक हाथ से हिंदी और एक हाथ से इंग्लिश टाइप कर सकते हैं. दोनों भाषाओँ पर इतनी जबर्दास्त्त पकड़ , एक इंसान किस हद्द तक स्किल्ड और टेलेंटेड हो सकता है ये उस दिन मैंने जाना.
उसके बाद मुझे तभी होश आया जब मैंने अपनी पीठ पर कुछ शाबाशी के थपके महसूस किये. उसके बाद पूरे दिन वो जिससे भी मिले सबसे कहते रहे आज एक ट्रेनी ने अकेले बुलेटिन निकला है.उनका नाम मुझे अब ठीक से याद नहीं ..कुछ मधु सूदन जैसा था.और काफी सीनियर पोस्ट पर थे. वे भी शायद न पहचान पायें मुझे. पर ये शब्द जब जब मुझे सुनाई पड़ते खुद पर गर्व सा हो आता और काम के प्रति श्रद्धा और जोश बढ़ता जाता और सपने एक बार फिर साफ़ साफ़ दूर दूर तक नजर आने लगते.
पर इस सबके बावजूद कुछ महीनो बाद एक दिन मैंने यह जॉब छोड़ने का निश्चय कर लिया मेरी बेटी होने वाली थी और मुझे जिम्मेदारियों की खिचड़ी बनाना जरा भी पसंद नहीं था.परन्तु जिस दिन जॉब छोड़कर आई बुक्का फाड़ कर रोई जैसे एक हिस्सा मेरे जीवन का छूट गया था . पर फैसला मेरा अपना था और मैं उसपर पूरी तरह निश्चिन्त थीं कि अगर बच्चे करने हैं तो अपना १०० % उन्हीं को देना है.एक बार फिर सपने बदल गए और इसी भावना और फ़र्ज़ के साथ जिंदगी काटने लगी,और शायद यूँ ही कटती रहती अगर फिर अचानक एक घटना न घट गई होती. अगर मेरी ११ साल की बच्ची से किसी ने न पूछ लिया होता कि बेटे तुम बड़ी होकर क्या बनोगी ?. और उसका जबाब आया “मम्मी ...घर में रहूंगी, घर के काम करुँगी, खाना बनाऊँगी, बच्चों को स्कूल छोड़ कर आउंगी, लेकर आउंगी”.उसका ये जबाब सुनते ही मेरे अंदर एकता कपूर का सीरियल और हेमा मालिनी दोनों एक साथ प्रवेश कर गई ..नहीईई....................तीन बार गूंजा.... हे भगवन ! ये क्या हो गया. इस बच्ची ने मुझे अपना आइडियल मान लिया था वो मेरे जैसा बनना चाहती थी. और मैं ?? उसे अपने जैसा बनते नहीं देखना चाहती थी. हम माएं कभी कभी बड़ी ढोंगी हो जाती हैं.खुद के लिए उसूल कुछ और, अपने बच्चों के लिए कुछ और. उस दिन पहली बार मुझे अपने फैसले पर गुस्सा आया.मुझे याद आया जॉब छोड़ने के कुछ दिन बाद उन्हीं सीनियर से फिर एक शादी के मौके पर मुलाकात हुई तो मेरे पति ने उनसे मजाक में शिकायत की “आप लोगों ने बहुत काम लिया मेरी बीवी से मेरी नई नई शादी का सारा क्रीम समय छीन लिया” तो उनका जबाब आया “और आपने हमारा क्रीम एम्प्लोयी हमसे छीन लिया” पहली बार अहसाह हुआ काश नहीं छोड़ी होती मैंने नौकरी.
मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की ..बेटा ऐसा नहीं है. मैं भी जॉब करती थी ये कुछ उपरोक्त गर्व भरे किस्से भी उसे सुनाये पर ये सब जैसे मुझे खुद को ही “वंस अपॉन अ टाइम” से शुरू हुई कोई कहानी भर लग रहे थे. अब जरुरत कहानी की नहीं किसी ऐसे काम की थी जो घर के काम से अलग लगे और तभी मिला मुझे यह ब्लॉग और मैं लिखने लगी बहुत कुछ निरर्थक लिखा और कुछ सार्थक भी. बेशक ये काम नहीं था .परन्तु क्या फालतू लिखती रहती हो के तानो के साथ बच्चों की गर्व से भरी दृष्टि थी. और मेरे मन का सुकून.
और फिर एक दिन बेटी स्कूल से आई तो चिल्लाकर बोली Mom !! I need your book. my teacher is asking for it . She was asking every one about their parents today at lesson.As i said my Mom is a writer .she said ..wow Thats posh..and asked for a copy of your book.
वो बोले जा रही थी और मेरी आत्मा सुकून पा रही थी. सपने फिर करवट लेने लगे थे.यूँ मेरा ये हिंदी लेखन कहीं से भी पॉश नहीं, न ही कोई प्रोफेशन है. पर कम से कम मेरे बच्चों का आईडियल बनने में अब मुझे गुरेज नहीं.अब मेरे सपनो में मेरे बच्चों के साथ मेरा अपना काम भी शामिल है.
Achha sansmaran
ReplyDeleteमैंने खुद कभी जॉब तो नहीं की मगर आपकी यह पोस्ट पढ़कर मुझे अपना दिल्ली की एक संस्था EYAAN से किया हुआ अपना न्यूज़ रीडिंग का डिप्लोमा और वहाँ गुज़ारे हुए सभी यादगार दिन याद आगए वहाँ न्यूज़ कहीं जाती तो नहीं थी मगर जब बारी-बारी सबका नंबर आता था न्यूज़ रीडिंग के लिए तो कुछ ऐसा ही माहौल हो जाता था जैसा अपने लिखा :-) तब मेरे भी सपने कुछ और हुआ करते थे।
ReplyDeleteOh Waah!!! :) :) :)
ReplyDelete"वो बोले जा रही थी और मेरी आत्मा सुकून पा रही थी. सपने फिर करवट लेने लगे थे.यूँ मेरा ये हिंदी लेखन कहीं से भी पॉश नहीं, न ही कोई प्रोफेशन है. पर कम से कम मेरे बच्चों का आईडियल बनने में अब मुझे गुरेज नहीं.अब मेरे सपनो में मेरे बच्चों के साथ मेरा अपना काम भी शामिल है."
ReplyDeleteइससे अच्छी बात क्या हो सकती है।
वैसे न्यूज़ रीडर बनने का सपना कभी मैं भी देखा करता था शोभना जगदीश मेरी आदर्श हुआ करती थीं। इसिलिए बचपन से कॉलेज तक हिन्दी ( किताबें और अखबार) और संस्कृत को ज़ोर से बोल कर पढ़ा करता था।
सादर
सादर
पीछे मुड़कर देखने पर अगर परछाईं अपने से लम्बी हो जाए तो इसका अर्थ है कि आप रोशनी की दिशा में बढ़ रहे हैं | और आपकी परछाईं तो आपसे बहुत अधिक लम्बी हो गई है , जो आपके बच्चों को अवश्य ही ठंडक पहुचायेगी | आप ऐसे ही रोशनी की ओर अग्रसर होती रहें | आपको आपकी उपलब्धियों पर बधाई एवं शुभकामनाएं |
ReplyDeleteखुबसूरत यादों के संग साफ सुथरी जिंदगी और जिम्मेदारी का लेखा ,जहाँ एक निरणय माँ के दायित्वों का .......
ReplyDeleteकरवट लेते सपने सब संभव कर देते हैं, कुछ सार्थक करने की सम्भावना नहीं मिटती है कभी...
ReplyDeleteWonderful journey, the one that was 'once upon a time' and the one that is being pursued now!!!
Regards,
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइस बहाने अतीत की यादें भी ताज़ा हो गई और उन दिनों की सफलता अब आपके जीवन में नए सपने दिखा रही है. यूँ ही वक्त के साथ सपने सजते, पूरे होते, छूटते, और पलते हैं. आपकी लेखनी यूँ ही अनवरत जारी रहे और हर सपने पूरे हों, शुभकामनाएँ.
ReplyDeletebehad saras.....
ReplyDeleteआदमी जब संघर्ष करता है तो उसके विशेज़ फुल फिल होते ही हैं।
ReplyDeleteजिसमें लगन होती है वह सब बाधाएं पार कर लेता है।
रोचक संस्मरण! बधाई लेखिका होने के लिये।
ReplyDeleteइतनी कठिन घड़ी में तो सबके हाथ पाँव फूल जाते हैं।
ReplyDeleteshikha ji bharat gai thi atah aapka likha bahuut dino se nahi padh pai na hi likh pai .
ReplyDeleteaapka likha huaa bahut se logon ka bhav hota hai aur unka vichar huota hai .
aapko padha sada hi sukhad hota hai
rachana
bahut sachhaa sa aalekh ..achhaa hai ...sapne sach ho rahe hai kuch
ReplyDeleteकई बार परिस्थितियां ही हमें अपनी काबिलियत से रूबरू करवाती हैं , हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहद रोचक संस्मरण प्रस्तुति के लिये, बधाई,,,,,,,,,शिखा जी ,,,,,
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
i read ur story. its a real story of a news room. jis andaj me apne likha he, behad sunder.
ReplyDeleteवक़्त के साथ ..
ReplyDeleteख़यालात बदल जाते हैं ...!!
ज़िन्दगी के साथ मज़े से चलने के लिए ज़रूरी यही है ...जब जैसा वक़्त हो वैसा ही निर्णय लिया जाये !!
बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक आलेख ...!!
शुभकामनायें शिखा जी ...
heyyy hiieeeee!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletemeraa naam v shikhaaaaaaa hai....apka ye blog or website whatever it is i dunn kno :P :P :P i really like a lot....mai sab post to nai padhti...poetries waigarah mujhe smjh men aatii naiii and baaki aapka likhaa hua article goes mere sar k upaar se.....300kmph u know :P :P :P but sum of ur post wch r ur own stories are really really wonderful.....i also subscirbed ur fb page...........and usme ek do line ka poem likha tha aapne(wat was that poem, or shayari i dun kno :P) that do line valaaa poem maine cut paste kar liya....last line mein it was having my name(actuallly ur name :P)...to mere dost samajh gyee ki vo maine likhaa hai :P :P :P :P i hope u wont mind...cuz maine b unhe nai kahaa ki ye maine nai likhaaa hai :D
and mai bi london mein rahti thi...god i miss london so much....US is boring..i was living near MK..whr u live??????..and i jst wanna tell u dat u write so nice....i just luvd ds story of urs....
u kno vot mai b aapki tarah confuse thi when i got my first job...in london...LOL mai to hamesha ofc jana bunk kar deti thi....:D :D :D aunty used to tell me ki ofc jaanee k time hi isey pet dard or sar dard hota hai :P :P :P :P but it was fun :D
but seriously aap to indian idol ho...sachhi vaaaaaaaaaliiiii.... itta dur reh rahe ho london se aur fir bhi itti beautiful hindi likhte ho (kaise likhte ho aap sab...mai kyu nai likh paati :( :P ) aur itne popular ho.....
but its all d jadooooo of d name shikhaaaaaa i guessss :D :D :D :D :D :D
anyway u hv a nice day aur aap mere naaaaam oooppssss apne naaaam isi tarah unchaa karte rahoooooooooooo......
best of luckk
ohhhh myyyyyy god!!!!!!!!!!!!!!..can u please ignore my last comment :P its full of crappy things aur itta badaa hai.... :P :P
ReplyDeletebut i guess u kno my name ryt?????? :P
ReplyDeleteअच्छी खासी जॉब बच्चों के लिए छोड़ना बहुत जिगर का काम है , ऐसे निर्णय लेना इतना आसान नहीं होता . ब्लॉगिंग ने उन गृहिणियों को जो किसी कारणवश घर से बाहर जाकर काम नहीं करना चाहती , एक अच्छा प्लेटफोर्म दिया है , निरर्थक से सार्थक की ओर बढती जाती है यह यात्रा ...
ReplyDeleteहमें भी गर्व है आप पर ...बहुत शुभकामनायें !
रोचक संस्मरण -आपबीती
ReplyDeleteपर कम से कम मेरे बच्चों का आईडियल बनने में अब मुझे गुरेज नहीं.अब मेरे सपनो में मेरे बच्चों के साथ मेरा अपना काम भी शामिल है.
ReplyDeleteवक्त के साथ प्राथमिकताएं बदलती हैं , सोच बदलती है और सपने भी .... और जब सपनों में बच्चों का भविष्य भी शामिल हो जाए तो बात ही क्या ...बच्चें जब माँ के कृत्यों पर गर्व करते हैं तो माँ तो आसमान छूने लगती है ......बहुत रोचक संस्मरण ..... ब
कितने सारे समझौते होते हैं .... इस ख़ुशी को मैं समझ रही हूँ .... यह प्राप्य अनमोल है
ReplyDelete"वो बोले जा रही थी और मेरी आत्मा सुकून पा रही थी. सपने फिर करवट लेने लगे थे.यूँ मेरा ये हिंदी लेखन कहीं से भी पॉश नहीं, न ही कोई प्रोफेशन है. पर कम से कम मेरे बच्चों का आईडियल बनने में अब मुझे गुरेज नहीं.अब मेरे सपनो में मेरे बच्चों के साथ मेरा अपना काम भी शामिल है "
Aap ke lekhan pe tippanee dene ke liye apne aap ko asamarth patee hun....behad adnasi wyakti hun.
ReplyDeleteबहुत रोचक लगा... आपको बधाई कि आपने फिर अपना एक मुकाम बना लिया और अपनी बच्ची के लिए आदर्श बन गईं...
ReplyDeleteबढ़िया लगा
ReplyDeleteयिप्पीई .... ख़ुशी में ऐसे ही चिल्ला पड़ी ..अब देर मत कीजिये aur रूस के बाद के अनुभव कागज़ पर उतारिये ....हम प्रतीक्षा में है
ReplyDelete@ Shikha! I don't only know your name I think I know you as well :)
ReplyDeletethanks so much for your wonderful words anyways. I will try my best to keep your name high:):).
Kshama ji ! आपकी पेंटिंग्स और कविता के तो हम पंखें हैं..आप तो ऐसा न कहिये :).
ReplyDeleteसोनल !! तुम एक दिन जान लेकर छोडोगी :):)
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण , कभी कभी कुछ क्षण जिन्दगी की चाल ही बदल देते हें और फिर ये कदम जिस रह पर चल निकालते हें वह हमें मालूम नहीं होते लेकिन जिस मंजिल पर लेकर खड़ा कर देते हें वह हमने सोची नहीं होती है. बस इसी तरह आगे बढ़ते रहो.
ReplyDeleteदृढ मनोबल भरे, जिम्मेदार संस्मरण!!
ReplyDeleteसुज्ञ: एक चिट्ठा-चर्चा ऐसी भी… :) में आपकी इस पोस्ट का उल्लेख है।
सच! वक़्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है...
ReplyDeleteआप अच्छा लिखती हैं...हमेशा लिखती रहिए...शुभकामनाएं....
मैं भी पेशे से पत्रकार हूं और ऐसे कई मौकों से दो-चार हुई. पीठ पर शाबासी की थपथपाहट दिनों तक नहाने से रोकती रही :) अब काबू पाना आ गया है और कुछ सौंदर्यबोध का लिहाज है.
ReplyDeleteमृदुलिका
लेख पढ़ कर अपना सा लगा ...जिंदगी से ताल मेल बैठा कर चलाना ...कठिन जरुर हैं पर मुश्किल नहीं .....ऐसे ही लिखती रहे ...आपके लेख कविता पढ़ना अच्छा लगता हैं
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteअपने बच्चो का आइडियल बन पाना गर्वकी बात होती है . ज्यादातर तो घर की मुर्गी दाल बराबर ही होती है . क्या खूब संस्मरण है .
ReplyDeletebehtreen.....
ReplyDeleteवैसे तो हम आज कल बहुत कम ही कमेन्ट करते हैं... चुपचाप पढ़ के निकल लेते हैं... लेकिन इस पोस्ट को पढ़कर समझ नहीं आ रहा क्या करूँ... बस इतना समझ आया कि कुछ तो कमेन्ट कर ही दूं... क्या करूँ पता नहीं.... :-) ;-)
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण दिल को छू गया
ReplyDeleteआपकी पोस्ट के साथ साथ मैं भी अपनी जिंदगी को समांतर चलते हुए देख रही थी .........मेरे भी सपने बदले बार बार कई बार ...........
ReplyDeleteख़ूब अच्छी तरह समझ रही हूं आप के मन पर क्या बीती होगी . ब्लाग लेखन का भी अपना आत्म-संतोष है ,और जन-स्वीकृति मिल जाये तो बात ही क्या है !
ReplyDeleteनिष्ठावान मन की पूरी झलक आपके लेखन में उतर आती है- उसे इतना ग्राह्य बनाती हुई.
मुझे आपका लेखन अच्छा लगता है .
न्यूज़ रीडर और फिर घर का काम फिर लिखाक ... जीवन में जो करो १०० प्रतिशत करो ...
ReplyDeleteकितना अच्छा लगता है कभी कभी अपने अतीत में झांकना और उनसब पलों कों याद करना ... अच्छा लगा ये लेख ...
मन को छू लेनेवाला संस्मरण...
ReplyDeleteबहुत खूब... देरी से आने के लिए माफ़ी... मन को छू लेनेवाला संस्मरण...
ReplyDeleteहमेशा की तरह रोचक ...
ReplyDeletesach hai apne astitva ke sath nyay kar ke hi samaj ko kuch diya ja sakta hai. bhut sahaj aur purn sampreshan...
ReplyDeleteAap se kya khna-............hmara yah jivan hmare ATIT ka result hai........es duniya me hr kisi ko mukkamal jaha nhi milta.....
ReplyDeleteसुन्दर ,सार्थक संस्मरण शिखा जी
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