जब भी कभी होती थी
संवेदनाओं की आंच तीव्र
तो उसपर
संवेदनाओं की आंच तीव्र
तो उसपर
अंतर्मन की कढाही चढ़ा
कलछी से कुछ शब्दों को
कलछी से कुछ शब्दों को
हिला हिला कर
भावों का हलवा सा
भावों का हलवा सा
बना लिया करती थी
और फिर परोस दिया करती थी
अपनों के सम्मुख
और वे भी उसे
और फिर परोस दिया करती थी
अपनों के सम्मुख
और वे भी उसे
सराह दिया करते थे
शायद मिठास से
शायद मिठास से
अभिभूत हो कर ,
पर अब उसी कढाही में
पर अब उसी कढाही में
वही बनाने लगती हूँ
तो ना जाने क्यों
आंच ही नहीं लगती
थक जाती हूँ
तो ना जाने क्यों
आंच ही नहीं लगती
थक जाती हूँ
कलछी चला चला कर
पर लुगदी भी नहीं बनती अब
और बन जाते हैं
पर लुगदी भी नहीं बनती अब
और बन जाते हैं
गट्ठे भावनाओं के
जिन्हें किसी को परोसने की
जिन्हें किसी को परोसने की
हिम्मत नहीं होती मेरी
इंतज़ार में हूँ कि
इंतज़ार में हूँ कि
कोई झोंका आकर बढ़ा जाये
कम होती आंच को
तो इन गट्ठों को गला कर
परोस सकूँ अपनों के समक्ष
कम होती आंच को
तो इन गट्ठों को गला कर
परोस सकूँ अपनों के समक्ष
आंच के ऊपर व्यस्तताओ की राख जम गई है ,फूंक मारिये ..आंच पुन: जीवित हो उठेगी और भांप बन आँखों से निकलेगी
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ||
ReplyDeleteखूबसूरत ||
गट्ठे भावनाओं के...
ReplyDeleteबढ़िया...!
मार्मिक भावनाएं, मार्मिक जतन ... !!!
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ReplyDeleteहलवा मुझे बहुत प्रिय है , अभी तो पढ़ के स्वाद ले रहा हूँ . शाम को जिह्वा वाला . हम अपनी दुआ में आपके लिए हवा का झोंका भी शामिल कर लेते है . भावनाओ की मिठास ने कविता को यम्मी यम्मी बना दिया .
ReplyDeleteशायर ने कहा है:
ReplyDeleteबेख्याली में कहीं उंगलियां जल जायेंगी,
राख गुज़ारे हुए लम्हों की कुरेदा न करो!
आँच जेनेरली राख में ही दबी होती है.. कभी अकेले में उनको हवा दीजिए, खुद से मुलाक़ात कीजिये... बस हमारे लिए फिर से वही स्वादिष्ट व्यंजन बन जाएगा!!
प्रेमासिक्त अभिलाषा
ReplyDeleteकड़ाई=कढाही?
मार्मिक भावनाएं, मार्मिक जतन, अति सुन्दर अगरिम दीपावली हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteवाह शिखा जी क्या बात है, आखिर बोर होते-होते भी आपने गट्ठे ही सही.... कुछ तो बना ही लिया फिलहाल मुझ से तो अभी तक वो भी नहीं बन पाये ;)....
ReplyDelete@अरविन्द मिश्रा!शुक्रिया ध्यान दिलाने का:)
ReplyDeleteवाकई शिखा !
ReplyDeleteभावनाओं की गर्मजोशी कम होती जा रही है ! केवल दिखावे से काम नहीं चलने वाला ...
परस्पर स्नेह और विश्वास पैदा करना ही होगा !
शुभकामनायें आपको !
शिखा जी!
ReplyDeleteइंतज़ार में हूँ कि
कोई झोंका आकर बढ़ा जाये
कम होती आंच को
तो इन गट्ठों को गला कर
जब प्रेरणा की आंच कम होने लगती है तब बहुधा
रचनातमक ठहराव आ जाता है। उससे जनित कशमकश पर भावपूर्ण प्रस्तुति। बहुत सुंदर। शुभकामनायें
आज कल संवेदनाओं में ताप कहाँ रहा है? बहुत ही संवेदनशील और भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteshikha jiaapto bekhayali me bhi sabhi ka khayal likh deti hai bahut bahut badhai
ReplyDeleterachana
bhaavnaaon ko dusron ke samakh parosnaa itna aasaan nahin hota, waqt ka jhonka hin lugdi bana deta hai, garm tazaa halua ke liye taazi hawaa kaise aaye? khud mein hin wo aanch laani hogi taaki swaadisht halua ban sake. bahut sundar bimb, badhai Shikha ji.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति. सुना है धीमी आंच में पकाई हुई चीज अधिक लज्जतदार होती है.
ReplyDeleteअश्विनी जी को यहाँ कमेन्ट करने में कुछ परेशानी आ रही है.उनकी मेल से प्राप्त टिप्पणी-
ReplyDeleteAshwini Kumar Vishnu रसोईघर और घर-परिवार के बिंबों से बुनी हुई सुन्दर कविता है "गट्ठे भावनाओं के।"
प्रेरक एक झोंका कम होती आंच को सघन कर जाये!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
vaise aap jo bhi banati hain bahut swadisht hota hai.....chahe gatte hi kyun na ho.
ReplyDeleteपहली बार किसी पकवान में दर्शन देख रहा हूँ।
ReplyDeleteवाह! पकवानों की बातों में भी भावनाओं का सुंदर प्रयोग।
ReplyDeleteसुन्दर कविता है शिखा जी.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपर अब उसी कढाही में
ReplyDeleteवही बनाने लगती हूँ
तो ना जाने क्यों
आंच ही नहीं लगती
थक जाती हूँ
जब संवेदनाओं की आंच
पड़ने लगे मध्यम ...
खींच एक गहरी साँस
छोड़ दो जोर से ...
दिल में जमी
राख झड जायेगी ...
मन में एक
नयी चेतना आएगी ..
फिर चढा देना
मन की कढाही को
उस आंच पर ..
वैसे गट्ठे बनी
भावनाएं भी
मिठास से परिपूर्ण हैं ..
उन्हें पा कर भी
हम अभिभूत हैं
भावनाओं से ओत- प्रोत सुन्दर रचना
संवेदनाओं की आंच , भावनाओं का हलवा ...
ReplyDeleteरसोई से उपजी इस कविता में भवनों के गट्ठे होने के बाद भी मिठास है ....
बेहतरीन , लाजवाब !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
बहुत खूबसूरत कविता दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत,बधाई..
ReplyDeleteभावपूर्ण और मार्मिक रचना....
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteआपकी आंच तो इतनी तीव्र है कि हलुवा क्या जलेबी भी बन जाए।
ReplyDeleteभावों का हलवा और कविता में दर्शन, वाह..
ReplyDeleteउम्दा है यह तो.. खाने वाले पकवान को सोच वाले पकवान से मिलाया है आपने!
ReplyDeleteWaah.. bahut gahre bhav ukere hain aapne..
ReplyDeleteBadhai..
वाह ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअरे यार तुम किस चक्कर मे पड गयीं………मोहब्बत की आँच पर पकाओ फिर देखो कितना स्वादिष्ट भोजन बनेगा।
ReplyDeleteआपकी इस कविता में काव्यात्मकता के साथ-साथ संप्रेषणीयता भी है। जीवन के जटिल से जटिल यथार्थ को बहुत सहजता के साथ प्रस्तुत कर दिया है आपने, और यदि गट्ठा है भी, तो बहुत ही स्वादिष्ट है, अब इसे दिखा दिया है तो परोस भी दीजिए। आपकी भा्षा काव्यात्मक है और इसमें उलझाव नहीं है, केवल गट्ठा होता तो शायद उलझाव होता। आपकी कविता पाठक को कवि के मंतव्य तक पहुंचाती हैं, यानी आपने अतिरिक्त पच्चीकारी नहीं की है, इसलिए यह गट्ठा भी हलवे की तरह ही स्वादिष्ट है।
ReplyDeleteab log shabdo se duri banayenge to yahi hoga....:)
ReplyDeleteshabdo ke halwa ke badle .....all time available shabdo ke pastry liye facebook pe samay beetayenge to kaise ban payega :)
.
.
waise tumhare pass shabdo ki thathi hai, thori si koshish matra se hi wo jeevant ho uthegi...aur wo iss kavita me dikh bhi raha hai..!!
god bless my friend!!
puri duniya tumahre post ka wait karti hai:)
bahut khoob...aanch punah tej hogi ..visvas rakhiye....
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत अच्छी रचना,बधाई!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से भावों को प्रस्तुत किया..बधाई.
ReplyDeleteपाक कला के साथ..जीवन दर्शन का अद्भुत संगम
ReplyDelete♥
ReplyDeleteअब उसी कढाही में वही बनाने लगती हूँ
तो ना जाने क्यों
आंच ही नहीं लगती
थक जाती हूँ कलछी चला चला कर
पर लुगदी भी नहीं बनती अब
और बन जाते हैं गट्ठे भावनाओं के
जिन्हें किसी को परोसने की हिम्मत नहीं होती मेरी
इंतज़ार में हूँ कि कोई झोंका आकर बढ़ा जाये
कम होती आंच को
तो इन गट्ठों को गला कर
परोस सकूँ अपनों के समक्ष
नये बिंबों के सहारे भावनाओं की अद्भुत प्रस्तुति आपकी इस भावपूर्ण रचना में हुई है …
बधाई और साधुवाद स्वीकार करें स्नेह मूर्ति शिखा वार्ष्णेय जी !
आपको सपरिवार
दीपावली की बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही संवेदनशील और भावपूर्ण प्रस्तुति| दीवाली की शुभ कामनाएं|
ReplyDeleteMAN KO BAHLANE KE LIYE YAH KHYAL BEHTAR HAI
ReplyDeleteइन भावनाओं के गट्टों की मिठास के आगे हलवे की क्या बिसात....
ReplyDeleteजय हिंद...
सुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
कहीं न कहीं चिंगारी जरूर होगी ... आंच आती रहेगी ... शब्दों को नए बिम्ब दिए हैं आपने इस रचना में ..
ReplyDeleteशिखा जी लगता हलवे की जगह
ReplyDeleteस्वादिष्ट खीर परोस दी है आपने
इस बार.खाते खाते मन ही नही
भर रहा.क्या संवेदना की आंच
के बजाय आपने स्पंदनों का
'माइक्रो वेव'ऑन कर दिया है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत
आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी
आईयेगा.
तो इन गट्ठों को गला कर
ReplyDeleteपरोस सकूँ अपनों के समक्ष
बहुत सुंदर ...सच बहुत कुछ रहता है भीतर कहे सुने जाने को...........
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कविता मुझे पसंद आई..... गट्ठे भावनाओं के..........बहुत ही प्यारी लाइंस......हैं...... आपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें....
ReplyDeleteऐसे ही भावना ओके गठ्ठे ही परोस दिया करे स्वादिस्ट लगते है ..और इन्ही गठ्ठो में भी कोई नयी ही मिठाई चखने को मिल जाएगी ...good..... posting ..
ReplyDeleteदीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteway4host
RajputsParinay
आपके पोस्ट पर आना सर्वदा सार्थक सिद्ध होता है । पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।.दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeletegatte itne zaykedar kbhi nhi khaye the shukriya happy divali
ReplyDeleteजीवन का सार कह दिया है आपने इस कविता में.. बहुत सुन्दर.. मर्मस्पर्शी..
ReplyDeleteso nice mem ! wow zestful, Tasty poem !!मुह में पानी आ गया !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की हलचल आज (30/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteअद्भुत रचना...
ReplyDeleteसादर...
चूल्हा-चौका,करछुल कड़ाही
ReplyDeleteजिंदगी देती दिखाई
सिम को थोड़ा ऑन करलो
गट्ठे को पकवान करलो.
शुभ-दीपावली.....
सुन्दर भावाव्यक्ति...बधाई.
ReplyDelete